पंचामृत सी पंचकन्या #लेखनी नॉन स्टॉप कहानी प्रतियोगिता-09-May-2022
पंचामृत सी पंचकन्या
अध्याय - 5 विश्वासघात (भाग 1)
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गौतम ऋषि मन से बेचैन थे, उन्हें भविष्य में होने वाली अप्रत्याशित घटना या किसी बहुत बड़ी दुर्घटना घटने का भय सता रहा था। वो अहिल्या के पास लेटे बेचैनी में करवट बदल रहे थे।
क्या ये सत्य है जो सुग्रीव कह रहा था, जब तक अपनी आँखों से ना देखूं विश्वास नहीं होगा। वो तो एक छोटा बालक है, उसकी बातों में अपनी प्राण प्रिय पत्नी पर शक करना उचित नहीं। मेरी और अपने पुत्र की कितनी सेवा करती है और अनाथ बाली और सुग्रीव दोनों वानर बालकों को वन में पड़े भूख से रोते बिलखते वानरों को गोदी में उठा आश्रम ले आई अपने पुत्र समान पाला। फिर सुग्रीव जिसे ये सबसे ज्यादा लाड दुलार करती है, उसने ऐसा क्यों कहा था कि उसने अहिल्या माँ को किसी गैर पुरुष के साथ अपनी कुटिआ में देखा।
मन में होती हलचल और सैंकड़ो सवाल.. क्या मेरी वृद्धावस्था में अहिल्या नया जीवनसाथी चाहती है। मैंने क्या कोई कमी छोड़ी है, उसकी सभी जरुरतों को तो पूरा करता हूँ, समय पर भोजन के लिए अन्न जल वस्त्र.. किसी भी वस्तु का आभाव तो नहीं है फिर.. नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता।
अहिल्या ऐसा कर ही नहीं सकती। सुंदरता की मूरत और दया कि देवी है मेरी अहिल्या। किसी किसी पुरुष की कुदृष्टि का शिकार तो नहीं हो गई।
ऋषि गौतम रात भर मन में उठते सवालों से परेशान हो आखिर रात्रि के तीसरे पहर ही अहिल्या को बिना कुछ कहे, उसके मासूम भोले चेहरे को कुछ पल निहार आश्रम से चल पड़ा, पहले नदी में जा स्नान और फिर ध्यान करूंगा तो मन शांत होगा।
अहिल्या गहरी नींद में सो रही थी, आने वाले खतरों से अनजान।चेहरे पर भोली मुस्कान अभी सोते हुऐ भी वो अत्याधिक खूबसूरत दिख रही थी।
दिन भर आश्रम के काम, भोजन पकाना, बच्चों को संभालना रात्रि तक थक कर चूर हो जाती और अपने पति गौतम ऋषि के पैर दबाते उसे नींद आ जाती और सुबह जल्दी उठ फिर पति की सेवा में लग जाती।
आज बिल्कुल अंजान थी, कब गौतम ऋषि कुटिया से बाहर गए वो जान ही ना सकी।
तीसरे पहर अहिल्या ने खुद को मजबूत बाहों के घेरे में पाया, वो स्वप्न देख रही है। यही प्यार यही आगोश तो वो हमेशा चाहती थी, आज पति से उसे उसी प्यार की अनुभूति प्राप्त हो रही थी। कभी संदेह होता तो कभी मन का वहम पर वो पल जिनका वर्षों से इंतजार कर रही थी, खुद को भूल ही तो गई थी, देवी समान जीवन नहीं वो पति से इसी तरह तो प्यार पाना चाहती थी। पूरी तरह पत्नी का सुख प्राप्त कर रही थी।
अचानक दरवाजे पर दस्तक और सैकड़ों सन्यासी की आवाजों से अहिल्या उन बाहों के घेरों से जिसे वो अपना पति समझ खुद को समर्पित कर रही थी, उठी अपने वस्त्रों को समेटते हुऐ खुद को संभालते हुए जब उसने निवस्त्र अपने बिस्तर पर अपने पति गौतम की जगह इन्द्र को देखा। नजरें शर्म से झुक गई, ये कैसी भूल हो गई। स्वामी कहाँ है, ये इन्द्र यहाँ मेरे बिस्तर पर मेरे साथ... खुद से घृणा होने लगी। अभी कुछ समय पहले जो खुद को पूर्णतः समर्पित कर बैठी थी अपना पति समझ, ये कैसी भूल हो गई।
गौतम स्नान कर ध्यान करने की कोशिश करते पर ना जाने क्यों आज मन ध्यान में लग ही नहीं रहा था, वो आश्रम की तरफ लौट आए। उन्हें देवताओं के वस्त्र और आभूषण कुटिया के बाहर दिखे, ये वस्त्र और आभूषण तो इन्द्र देव के हैं। ये यहाँ कैसे?? कुटिया अंदर से बंद क्यों है, मैं तो जाते वक्त बाहर से बंद कर गया था आज। फिर किसने खोला और अंदर से बंद... क्या अहिल्या उठ गई होगी। ऋषि गौतम अपनी कुटिआ के आस पास चक्कर काटने लगे, उन्हें परेशान देख उनका एक शिष्य आश्रम के सभी सन्यासी को बुला लाया।
क्रमशः
कविता झा'काव्या कवि'
# लेखनी
## लेखनी नॉन स्टॉप 2022 प्रतियोगिता
22.05.2022
Ali Ahmad
23-May-2022 09:20 PM
👌👌👌
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Raziya bano
23-May-2022 11:36 AM
Bahut achha
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Seema Priyadarshini sahay
23-May-2022 08:53 AM
बहुत ही खूबसूरत भाग👌👌👌
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